Sunday, December 31, 2017

उसकी माँ कोई और थी



उसकी माँ कोई और थी 
वो पड़ोसी मेरा भाई था 
भूख की मच्छरदानी में सोता था 
आँखें, मैं उससे नहीं मिलाता था 
लोगों की ही तरह 
इंसानियत का नकाब मैं भी पहने हुए था 

नज़रें मेरी बिगड़ने लगी थी 
कमीयां उसकी नज़र आने लगी थी 
लोगों के आंसूओं की आहट का कोई खबर नहीं था 
दिल को यूँही पत्थर बनाये बैठा था 

ये रूठने और मनाने के सिलसिले का एक पाठ था 
लेकिन मैं इस सब्जेक्ट में बुरी तरह से फेल था 
हर जगह जाके मै कैद हो जाता हूँ 
जो हूँ वो नज़र नहीं आता हूँ 

कोई शिकायत उसे नहीं थी 
वो अपनी मुस्कान से जाहिर कर देता था 
समझदारी उसके पैरों में रहती थी 
धर्म - जाति का चोला उसके पास नहीं था 






Wednesday, December 27, 2017

ये तुम्हारी ना समझ है

रोशनी

ये तुम्हारी ना समझ है
की जहाँ मैं जाती हूँ 
वहां से वो चला जाता है 
मैं अंधेरों से नफ्रत नहीं करती हूँ 
रोशनी हूँ, रोशनी का धर्म निभाति हूँ 

तुम्हे लगता है जिस महफ़िल में वो आता है 
मैं उस महफ़िल को छोड़ देती हूँ 
ये दूरियां दिखावे की है 
मैं हर जगह उसके पास रहती हूँ 

तुम ध्यान से देखना 
वो मुझमे कहीं रहता है 
और ये उसका हुनर है 
कि मैं उसमे जगमगाती हूँ 

जहाँ मैं ख़त्म होती हूँ 
वहीँ से वो शुरू होता है 
मेरा दिन थका देता है सबको 
सुकून बेचती है उसकी रातें








Tuesday, December 26, 2017

मुझपे ना घर वालों का भरोसा है

मुझपे ना घर वालों का भरोसा है

मुझपे ना घर वालों का भरोसा है
ना मुझपे मेरे दोस्तों का भरोसा है 
किस भरोसे पे मैं दुनिया से लडूं 
खड़े तो सभी हैं पर साथ कोई नहीं है 

लड़खड़ा के कई बार गिर सा जाता हूँ 
हौसले इतने हो जाते हैं,  कि कभी-कभी उनसे भी हार सा जाता हूँ 
चेहरा ही मेरा बदसूरत सा है 
मैं दिल का थोड़ा अच्छा भी हूँ 
अपने काम से काम रखता हूँ 
फिर भी हर किसी के सक के दायरे में रहता हूँ 

ले लो  मेरी तलासी 
अगर यकीं ना हो मुझपे तो 
जला देना इन रिश्तों को 
अगर मैं अपने चेहरा पे कोई पर्दा रखता हूँ तो 

मैं तुम्हें समझा नहीं सकता 
तुम्हारे हाँ को कभी नकार नहीं सकता 
बहुत संभल के जीना पड़ता है 
लोगों के यकीं के छत पे रहना पड़ता है 





Monday, December 25, 2017

सफ़र हुआ है तो ....

सफ़र हुआ है तो

सफ़र हुआ है तो 
हमसफ़र भी होना चाहिए 
चिट्टियों से काम ना चले तो 
मुलाकात भी होनी चाहिए

सिर्फ बातों से जी अगर ना भरे तो 
कहीं रात भी गुजरनी चाहिए
तेरी आँखों से आंसू अगर गिरे तो 
मेरे कंधों पे तेरा सर होना चाहिए 

हंसी पास ना हो तो 
थोडा रो भी लेना चाहिए 
ठोकर ना लगे राह में तो 
एक बार गिर भी जाना चाहिए 

अगर छोड़ दे मुझे तूं तो 
मेरी यादों में तुझे कैद होना चाहिए 
अगर तूं किसी और की हो जाये तो 
सिर्फ तेरे चेहरे पे मुस्कान होनी चाहिए 

Sunday, December 24, 2017

सोते - सोते जगा देता है

सोते - सोते जगा देता है

सोते - सोते जगा देता है
कोई धीरे से कंकड़ फेंक देता है
ना चाहते हुए भी हर चीज को समेट लेता हूँ
शायद  ये तालाब ही की फकीरी है

मुझे कोई कुछ रखने को ना देना
मछुवारे मुझे हर रोज़ लूट ले जाते हैं
प्यार सिर्फ बच्चों का ही मिलता है
हर रोज़ नहाने आते हैं

जून की गर्मी मुझे ना जाने क्यूँ सुखा देती है
परिंदों की प्यास भी बुझा नहीं पाता हूँ
मेरे अंदर जो जीते हैं
एक - एक करके मरते जाते हैं

पूरी तरह मैं खत्म नहीं होता हूँ
कहीं एक बूँद में खुद को जिन्दा रखता हूँ
लौट आती है वो जवानी
जब सावन दिख जाता है
बच्चों की हंसी में खुद हंस लेता हूँ
सिर्फ मछुवारों से ही डरता रहता हूँ

Friday, December 22, 2017

प्यार हमें भी हुआ था

प्यार हमें भी हुआ था


प्यार हमें भी हुआ था 
तूफानों के गाँव में दिया लेके चला था 
जमाने की मैं सुनता नहीं 
हुआ यूँ की घंटों उसको सुना था 

रात दिन कैसे गुज़रा ये जमाना जानता है 
आशिकी सिर्फ मेरी नहीं ये तुम भी जानते हो 
हर एग्जाम की बाखूबी तैयारी करता था  
निबंध बाद में पहले प्रेमपत्र लिख लेता था  

हर वो चीज मैंने छोड़ दी थी 
जो उसे अच्छा नहीं लगता था 
उसे अब भी मैं चाहता हूँ 
ये भी उसे अच्छा नहीं लगता है 

माँ मुझे नहीं बदलती है 
ये इश्क में ही क्यूँ अदला - बदली चलती है 
ये इंसानों की फितरत है 
या इश्क के बाज़ार में यही चलता है 

Thursday, December 21, 2017

सारी किताबें झूठी हैं

सारी किताबें झूठी हैं
wind
सारी किताबें झूठी हैं  
मैं इंसानों पे यकीं नहीं करती 
तूं जो भी है मेरे पन्नों पे लिखा है 
मुझपे किसी की हुकूमत नहीं, हवा हूँ 

इन पत्थरों में है अगर ईश्वर 
तो इनकी जुबां भी होगी 
तू बात कर या ना कर 
ये तुझे जानते भी होगें

मेरी सरसराहट क्या सिर्फ मेरी दौड़ने की आवाज है 
मैं नहीं मानती  की मुझमे जुबान नहीं है 
तूं समझ जा तो अच्छा होगा 
तेरी साँसे मेरी मुट्ठी में है , हवा हूँ 

मेरी नज़रें सबपे है
मुझसे कुछ छुपा नहीं है 
तुम संभल कर रहना 
मैं रिश्वत नहीं लेती  

जब तूं कटघरे में आयेगा
तेरा हर एक जुर्म खोल के रख दुंगी
मुझे किसी गवाह की जरुरत नहीं 
मैं झूठ नहीं बोलती, हवा हूँ 


Wednesday, December 20, 2017

रातों का ये रहम है



रातों का ये रहम है
Road

रातों का ये रहम है 
की मुझपे चलने वाले अभी कम हैं 
दिनों में चलने वाले इतने कहाँ से आ जाते हैं 
शायद मेरा नाम रास्ता है 

नंगे पाँव बहुत कम चलते हैं 
लोग मुझसे थोडा फासला रखते हैं 
मैं हर किसी के मंज़िल तक जाता हूँ 
शायद मेरा नाम रास्ता है 

 थोड़ी सी लापरवाही से, कई लोगों को मरते हुए देखा है 
मैं उन्हें होस्पिटल तो ले जाता,
लेकिन मैं वही हूँ जिसपे लोग चलते हैं 
शायद मेरा नाम रास्ता है 

मेरा भी कुछ वजूद है 
मुझपे चलने का भी कुछ ऊसूल है 
ऊसूलों को सिखाने में सरकार अमीर हो गयी 
और मैं योजनाओं के इंतज़ार में गरीब हो गया 
शायद मेरा नाम रास्ता है 

कुछ लुटेरों का भी आना जाना है
जो डरते हुए आते हैं वो मुझे भी डरा  देते हैं 
मेरे सामने वो लुट जाते हैं मैं देखता ही रह जाता हूँ  
शायद मेरा नाम रास्ता है 



Sunday, December 17, 2017

इश्क का शहर


Love sad pome
इश्क का शहर 


इश्क का शहर 
मेरी बस्ती से नज़र आया नहीं 
शाम गुज़रे जमाना हुआ  
नीद फिर भी नज़र आयी नहीं 

लोग खुद में ही उलझते रहे 
मुझमे देखने वाला कोई आया नहीं 
चेहरे की मुस्कान से ही वो लौट गए 
इस दीवार को तोड़ने वाला कोई आया नहीं 

शब गुज़रती रही मेरी उम्मीदों पे 
सिर्फ उनका आना ही काफी नहीं 
माना की इजहार का हुनर ना था मेरे पास 
वो तो समझदार थे, खामोश क्यों चले गये

रात भी जली, दिन भी जला 
मेरा सारा ख्वाब भी जला 
वादा भी नहीं हुआ 
अब इंतज़ार करने का कोई फायदा ही नहीं 



Saturday, December 16, 2017

अपने चेहरे पे सबका चेहरा बनाता है


Mirror with friends
Mirror with friends


अपने चेहरे पे सबका चेहरा बनाता है 
वो आईना हैं उसपे यकीं करता है 
कोई पूरा ईमानदार नहीं होता 
आइनों के पीछे चेहरा नज़र नहीं आता 

अगर तुम कुँओं तालाबों में भी झाँकोंगे 
चेहरे की चमक वो दिखा नहीं पाते 
कोई हुई हलचल अगर उनके अन्दर 
तो अपने चेहरे को बर्बाद होते पाओगे 

लोग कहते हैं आईना ईमानदार होता है 
लेकिन इंसान हूँ खुद को कहाँ यकीं होता है 
मैं जानता हूँ मैं हार जाऊँगा, उसके जैसा कोई और नहीं 
जिससे वो नाराज़ हो गया, वो खुद को पहचान नहीं पाते 

वो किसी से डरता नहीं हैं 
आँखों से आँखें मिला के बात करता है 
उसके घर में सबकी रिश्तेदारी  है
चेहरा बदलने का उसका कारोबार जारी है 
अपने चेहरे पे सबका चेहरा बनाता है 
वो आईना है उसपे यकीं करता है 


Friday, December 15, 2017

लोग मुझे पत्थर कहते हैं




पत्थर
Stone of seashore 

जरा सी ठोकर में तुम बिगड़ जाते हो 
हजारों लोग मेरे उपर से गुजर जाते हैं 
दिल मुझमे भी है
 लोग मुझे पत्थर कहते हैं 

विनम्रता का सूत्रधार हूँ मैं 
लोग थूक जाते हैं  उपर
जूते-चप्पल साफ कर जाते हैं उपर
फिर भी कुछ नहीं कहता हूँ मैं 
दिल मुझमे भी है
 लोग मुझे पत्थर कहते हैं 

तुम्हे छत के नीचे भी सुकूं नहीं मिलता   
मैं धुप में तपता हूँ, ठण्ड में गलता  हूँ 
लहरों की चोटें खा-खा के जीता हूँ  
फिर भी कुछ नहीं कहता हूँ 
दिल मुझमे भी है
 लोग मुझे पत्थर कहते हैं 

हवाओं में कितना भी जहर हो जाये 
उसके मेरे बीच कोई दिवार नहीं हो सकती 
बहुत जल्द भाग जाओगे तुम चन्द्रमा पे 
मेरा पैर हैं जिसपे मैं उसे छोड़ नहीं सकता 
दिल मुझमे भी है
 लोग मुझे पत्थर कहते हैं 

रात चूहे डरा देते हैं 
सांप - बिच्छू सर पे बैठ जाते हैं 
आज तुम्हारे कहने पे बोला हूँ 
वर्ना आजीवन मौन रहता हूँ 
दिल मुझमे भी है 
 लोग मुझे पत्थर कहते हैं 

Tuesday, December 12, 2017

लहरों में होता कौन है ?


लहरों में होता कौन है ?
समंदर
लहरों में होता कौन है ?
जो उन्हें दौड़ाता है
क्या उन्हें चोट नहीं लगती है
किनारों पे बार - बार क्यों लड़ाता है

जहाँ वो दरिया सा ठहर जाते हैं
मेरे जैसे को अपने अंदर क्यों दिखाते हैं
और खुद्खुशी जल्दि कोई नहीं कर पाता हैं
वो समंदर बार - बार किनारों पे क्यों फेंक जाता है

मछलियों जैसे कई उनकी रगों में दौड़ते हैं
हम इंसान हैं इंसानों को इजाजत क्यों नहीं देता है 
उनकी मोतीयां कोई और चुराता है 
और हमे शक की नज़रों से, वो क्यों देखता है

हम उनपे इल्जाम लगा देते हैं 
उनके हालात से ना समझ रह जाते हैं 
वो लहरें बूड़ी हो गयी होती हैं 
जिनके सर से जहाज फिसल के डूब जाता है 

लहरों में होता कौन है ?
जो उन्हें दौड़ाता है





Sunday, December 10, 2017

हम कैल्शियम के स्रोत हैं

Poem
Banana : hum calcium ke srot hain . 


हम कैल्शियम के स्रोत हैं  
कोई बचपन आने से पहले ही 
हमे काट के सब्जी बना देता है 
तो कोई जवानी आने से पहले ही 
दवा छिड़क के बूढ़ा बना देता है

हम  कैल्शियम के स्रोत हैं  
बुढ़ापे में हमारा पूरा बदन पीला पड़ जाता है 
उपर से हमे कोई  फ्रिज में रख देता है 
हमारे शरीर का सारा खून जम जाता है 
लेकिन तब भी हम मरते नहीं हैं 

हम  कैल्शियम के स्रोत हैं  
जब हम आये थे तो कई थे 
एक-एक कर के कोई हमे चुरा ले जाता है 
वो चोर हमेशा हमसे जीत जाता है 
अब केवल हम दो बचे हैं 

हम कैल्शियम के स्रोत हैं 
कोई हमारे बदन से चमड़े को निकाल के फेंक देता है
और मुस्कुराते हुए हमे खा जाता है 
हमें खा के वो कर्ज वसूल लेता है  
हम कैल्शियम के स्रोत हैं 


हम तो उनके भी नहीं हुए



हम तो उनके भी नहीं हुए 
जिनकी तमन्ना हुआ करती थी होने की 
मोहब्बत उनसे नहीं सम्हलती 
जिनकी आदत हो जादे सोने की

मैं अकेले ही जी रहा था 
मेरी आदत नहीं थी ,किसी कंधे पे सर रख के रोने की 
और उनकी ज़िन्दगी खरीद लेता है कोई 
जिनके पास हुनर नहीं है जुआ खेलने की

मेरे आंसुओ को मेरे ही हाथ ने पोछा था 
मेरे पास कोई तरकीब नहीं थी , रिस्तों को निभाने की 
मै तब भी खुल के नहीं हंसा करता था 
वो उम्र नहीं थी , जवाने की परवाह करने की

मुझे मौत कैसे आई थी
क्या ये इंसानों की साजिस थी , मुझे दफ़नाने की 
मेरी मौत की खुशी में तो तू भी था 
क्या ये कोई साजिश है  मेरे आंसुओं से बच जाने की 

Saturday, December 9, 2017

मैं वो दरिया नहीं



मैं वो दरिया नहीं, जो किनारों से कैद रहूँ 
और मैं वो प्यार भी नहीं ,जो टूट के बिखर जाऊं
तुफ़ा लाना है तो ला तूं 
मैं वो पत्थर नहीं, जो लहरों से डर जाऊं

ये मौत का डर किसी और को बताना
मैं जिन्दा ही कब था जो मर जाऊंगा
प्यार में जिंदगी है खुद को  समझाना
मुझे दोस्ती ना मिली तो दुस्मनी निभा लूँगा





Friday, December 8, 2017

अगरबत्ती स्टैंड को किसने हुक्म दे दिया



Poetry at Agarbatti stand
अगरबत्ती स्टैंड 



अगरबत्ती स्टैंड को किसने हुक्म दे दिया 
इन धुओं को टुकड़ों में बिखेरने की 
और साजिस किसकी थी 
जलते हुए को कैद करने की

चाह के भी वो खुद को बुझा ना पाया 
ऐसी आग लगी थी उसके बदन पे 
और उतने ही हवाओं को मिलने दिया गया 
ताकि वो  मिलके कहीं उसे बुझा न दें 

हर कोई कर्जदार हो गया 
उसके बिखरे हुए खुशबू की 
और वो जल के राख हो गया 
ऐसी बेवफाई थी उसके खुशबू की 





अमीरों का एक शहर था





 अमीरों का एक शहर था 
जहाँ गरीबी रोया करती थी 
हर चेहरे पे मुस्कान थी 
उदासी कहीं दूर बैठा करती थी

मुस्कानों की बहन "हँसी" भी थी 
उदासी का सगा भाई "रोना" गाँव की पुलिया पे बैठा करता था
रोना इनका मुक्कदर बन गया था 
इनके लिए हर किसी का दरवाजा बंद  हो गया था

मेरे दरबार में कोई पहरेदार ना था
दरवाजा मेरा खुला रहता था
बादशाहों में मेरा भी नाम था
डर मुझसे काँपता रहता था

तुम क्या करोंगे खुद की निलामी
बर्बादी में भी हमने खुद को हँसाया था
कुछ नहीं में भी, हमने पुड़ी और पकवान बनाया था 
गरीबी के सारे रिस्तेदारों को,  हमने दावत पे बुलाया  था



Wednesday, December 6, 2017

वो तो वहीं रह गए




वो तो वहीं रह गए 
जिनकी बातें बड़ी हुआ करती थी 
और उनका नाम शहरों में बिक गया 
जो महफ़िलों में डर जाया करते थे

तुम्हारी बातों में तहजीब नहीं थी 
उसके रोने की वजय कोई और नहीं थी 
कहाँ जाओगे आँसुओं का कर्ज लेके
ये तुमको साजिशों से घेर लेंगे
कितनी भी चलो दुआएँ लेके


Tuesday, December 5, 2017

बादलों की आँखें आज नम हो गई




बादलों की आँखें आज नम हो गई 
कल तो सही थीं
आज कौन सी आफत आगई
किसी से आशिकी हो गई 
या कोई और  बात हो गई 
बस करो थम जाओ 
आँखें लाल हो जाएगी 
तुम ना रुके तो,
हम भी परेशान हो जायंगे 



Monday, December 4, 2017

मैं बहुत दूर हूँ




मैं बहुत दूर हूँ
कोई है क्या मेरे पास
खुद के करीब होना, कितना मुश्किल है
तुम तुम्ही हो, या तुझमें कोई और है
मेरे चहरे पे आके कोई झूठ बोल जाता है
और सजाये मौत मुझे हो जाती है
तुम्हारी आँखों में आंसू गिरना, ये अच्छा नहीं था
वो मुझमे कोई और था, जो तुझे रुलाया था
मैं बहुत दूर हूँ
कोई है क्या मेरे पास





Saturday, December 2, 2017

वो शहर ही, कुछ ऐसा था




वो शहर ही , कुछ ऐसा था 
जहाँ हर तरफ आशिकी का खुमार था 
स्कुल के ही पीछे एक बाग़ था 
जहाँ हम मिला करते थे 

मिलने में कुछ दोस्तों की मेहरबानी थी 
तो कुछ गुरु द्रोणाचार्य थे 

घंटो बातें होती थी 
जिसमे मेरी ख़ामोशी थी 
उसके बोलने में कहीं थकान नहीं थी
सुनने की आदत उसी से मिली थी 

फूलों की पंखुडियां आसमान से बात कर रही थीं 
बस बिखरना बाकी था 

अपना ही कोई प्रिंसिपल से बात किया 
और मेरे मम्मी-पापा को, उसकी मम्मी-पापा के सामने किया 
लोगों की आपस में बहस हुई 
फिर ना वो मिली , ना हम मिले 
कुछ ऐसा संविथान हुआ 

मैं खामोश तभी से हूँ 
बस उसकी बातें कहीं खो गई 
वो शहर ही कुछ ऐसा था 
जहाँ हर तरफ आशिकी का खुमार था 




Friday, December 1, 2017

शहरों में अँधेरा डर सा जाता है




शहरों में अँधेरा डर सा जाता है
छुप के किसी कोने में, अपने जैसे को ढूढ़ता है
रोशनी हंसती है
मगर उसे नहीं पता कोई रोता है

यहां घरों में  खुशीयाँ  दौड़ती है 
मुस्कान हर किसी के चहरे पे होती है 
दहशत तो उन घरों में होता है
जहाँ छत के निचे बारिश होती है

तुम्हे चावल - दाल की फिक्र कहाँ
तुम तो हजारों का पटाका जला देते हो 
हमसे पूछों, कई दिनों तक बिना तेल की सब्जी खा के
हम  दीवाली मनाते हैं

तुम तो कपड़ों के मुरझाने पे ही उन्हें फेंक देते हो
ज़िन्दगी भर का साथ तो हम निभाते हैं
साबुन में झाग मिले या ना मिले
हम तो पानी से ही धुल के काम चलते हैं

और रहने दो ये दिखावे  की वफादारी
भिखारियों को तो तुम दूर से ही सलाम करते हो
और बच के रहना वक्त के लहरों से
ये जिससे रूठ जाता है उसे अपने भी नहीं पहचानते हैं 





समस्या बतायी जा रही है

समस्या बतायी जा रही है  सबको दिखाई जा रही है  ये भी परेशान है  ये बात समझायी जा रही है   देसी दारू पिलाई जा रही है  रेड लेबल छुपाई जा रही है...