रातों का ये रहम है
की मुझपे चलने वाले अभी कम हैं
दिनों में चलने वाले इतने कहाँ से आ जाते हैं
शायद मेरा नाम रास्ता है
नंगे पाँव बहुत कम चलते हैं
लोग मुझसे थोडा फासला रखते हैं
मैं हर किसी के मंज़िल तक जाता हूँ
शायद मेरा नाम रास्ता है
थोड़ी सी लापरवाही से, कई लोगों को मरते हुए देखा है
मैं उन्हें होस्पिटल तो ले जाता,
लेकिन मैं वही हूँ जिसपे लोग चलते हैं
शायद मेरा नाम रास्ता है
मेरा भी कुछ वजूद है
मुझपे चलने का भी कुछ ऊसूल है
ऊसूलों को सिखाने में सरकार अमीर हो गयी
और मैं योजनाओं के इंतज़ार में गरीब हो गया
शायद मेरा नाम रास्ता है
कुछ लुटेरों का भी आना जाना है
जो डरते हुए आते हैं वो मुझे भी डरा देते हैं
मेरे सामने वो लुट जाते हैं मैं देखता ही रह जाता हूँ
शायद मेरा नाम रास्ता है
Good one
ReplyDeleteNice ..keep it up
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