Sunday, December 24, 2017

सोते - सोते जगा देता है

सोते - सोते जगा देता है

सोते - सोते जगा देता है
कोई धीरे से कंकड़ फेंक देता है
ना चाहते हुए भी हर चीज को समेट लेता हूँ
शायद  ये तालाब ही की फकीरी है

मुझे कोई कुछ रखने को ना देना
मछुवारे मुझे हर रोज़ लूट ले जाते हैं
प्यार सिर्फ बच्चों का ही मिलता है
हर रोज़ नहाने आते हैं

जून की गर्मी मुझे ना जाने क्यूँ सुखा देती है
परिंदों की प्यास भी बुझा नहीं पाता हूँ
मेरे अंदर जो जीते हैं
एक - एक करके मरते जाते हैं

पूरी तरह मैं खत्म नहीं होता हूँ
कहीं एक बूँद में खुद को जिन्दा रखता हूँ
लौट आती है वो जवानी
जब सावन दिख जाता है
बच्चों की हंसी में खुद हंस लेता हूँ
सिर्फ मछुवारों से ही डरता रहता हूँ

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thank u so much...

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