मुझपे ना घर वालों का भरोसा है
ना मुझपे मेरे दोस्तों का भरोसा है
किस भरोसे पे मैं दुनिया से लडूं
खड़े तो सभी हैं पर साथ कोई नहीं है
लड़खड़ा के कई बार गिर सा जाता हूँ
हौसले इतने हो जाते हैं, कि कभी-कभी उनसे भी हार सा जाता हूँ
चेहरा ही मेरा बदसूरत सा है
मैं दिल का थोड़ा अच्छा भी हूँ
अपने काम से काम रखता हूँ
फिर भी हर किसी के सक के दायरे में रहता हूँ
ले लो मेरी तलासी
अगर यकीं ना हो मुझपे तो
जला देना इन रिश्तों को
अगर मैं अपने चेहरा पे कोई पर्दा रखता हूँ तो
मैं तुम्हें समझा नहीं सकता
तुम्हारे हाँ को कभी नकार नहीं सकता
बहुत संभल के जीना पड़ता है
लोगों के यकीं के छत पे रहना पड़ता है
Wah ji Kya baat hai.nice keep it up.
ReplyDeleteGood one
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