Sunday, December 17, 2017

इश्क का शहर


Love sad pome
इश्क का शहर 


इश्क का शहर 
मेरी बस्ती से नज़र आया नहीं 
शाम गुज़रे जमाना हुआ  
नीद फिर भी नज़र आयी नहीं 

लोग खुद में ही उलझते रहे 
मुझमे देखने वाला कोई आया नहीं 
चेहरे की मुस्कान से ही वो लौट गए 
इस दीवार को तोड़ने वाला कोई आया नहीं 

शब गुज़रती रही मेरी उम्मीदों पे 
सिर्फ उनका आना ही काफी नहीं 
माना की इजहार का हुनर ना था मेरे पास 
वो तो समझदार थे, खामोश क्यों चले गये

रात भी जली, दिन भी जला 
मेरा सारा ख्वाब भी जला 
वादा भी नहीं हुआ 
अब इंतज़ार करने का कोई फायदा ही नहीं 



1 comment:

thank u so much...

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समस्या बतायी जा रही है  सबको दिखाई जा रही है  ये भी परेशान है  ये बात समझायी जा रही है   देसी दारू पिलाई जा रही है  रेड लेबल छुपाई जा रही है...