Thursday, August 30, 2018

कुछ वक्त ऐसा भी गुजरता है

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कुछ वक्त ऐसा भी गुजरता है
की हम नज़र अंदाज़ में होते हैं
अपने तो  हर रोज दुआएं देते हैं
फिर भी कुछ खास नहीं होता है

और उन आंसुओं की कोई कीमत नहीं होती है
जिनको पोछने वाला कोई नहीं होता है
और रिश्तों की दीवारे भी कमजोर पढ़ जाती हैं
जिनमे वफ़ादारी का कोई ईंट नहीं होता है

मेरी हरकतों पे उसकी नज़र होती है
उसके हारने की और क्या वजय हो सकती है
उसके तमाम कोशिशों के बावजूद भी मैं रोया नहीं
ऐसा क्या है मेरे आसुंओं में जो उसको सुकून मिलता है 

Sunday, August 26, 2018

हम चले थे साथ - साथ


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हम चले थे साथ - साथ
फिर ना जाने क्या हुआ 
पहले तो रास्ता एक था 
अब ये तुमको क्या हुआ 

बचपन हो लिया, जब वक्त के साथ 
फिर नहीं वो साथ हुआ 
ये लम्हों का ही खुरापात था 
जो आज वो अजनबी हुआ 

कुछ  लोगों का है साथ 
उसमे तुम  नहीं तो क्या हुआ 
जब ये आँखे रो पढ़ी थी 
तब सवालों का जन्म हुआ  

जो रास्ते है साथ - साथ  
उसपे अकेला क्यों हुआ 
पहले तो मैं भी सही था 
फिर मैं झूठा क्यों हुआ

समस्या बतायी जा रही है

समस्या बतायी जा रही है  सबको दिखाई जा रही है  ये भी परेशान है  ये बात समझायी जा रही है   देसी दारू पिलाई जा रही है  रेड लेबल छुपाई जा रही है...