जहाँ गरीबी रोया करती थी
हर चेहरे पे मुस्कान थी
उदासी कहीं दूर बैठा करती थी
मुस्कानों की बहन "हँसी" भी थी
उदासी का सगा भाई "रोना" गाँव की पुलिया पे बैठा करता था
रोना इनका मुक्कदर बन गया था
रोना इनका मुक्कदर बन गया था
इनके लिए हर किसी का दरवाजा बंद हो गया था
मेरे दरबार में कोई पहरेदार ना था
दरवाजा मेरा खुला रहता था
बादशाहों में मेरा भी नाम था
डर मुझसे काँपता रहता था
तुम क्या करोंगे खुद की निलामी
बर्बादी में भी हमने खुद को हँसाया था
कुछ नहीं में भी, हमने पुड़ी और पकवान बनाया था
मेरे दरबार में कोई पहरेदार ना था
दरवाजा मेरा खुला रहता था
बादशाहों में मेरा भी नाम था
डर मुझसे काँपता रहता था
तुम क्या करोंगे खुद की निलामी
बर्बादी में भी हमने खुद को हँसाया था
कुछ नहीं में भी, हमने पुड़ी और पकवान बनाया था
गरीबी के सारे रिस्तेदारों को, हमने दावत पे बुलाया था
Very nice ... दावत पर इस ग़रीब को भी बुलाओ।
ReplyDeleteबढियां है।
ReplyDeleteNice lines
ReplyDeleteBeautiful lines
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