Friday, December 8, 2017

अमीरों का एक शहर था





 अमीरों का एक शहर था 
जहाँ गरीबी रोया करती थी 
हर चेहरे पे मुस्कान थी 
उदासी कहीं दूर बैठा करती थी

मुस्कानों की बहन "हँसी" भी थी 
उदासी का सगा भाई "रोना" गाँव की पुलिया पे बैठा करता था
रोना इनका मुक्कदर बन गया था 
इनके लिए हर किसी का दरवाजा बंद  हो गया था

मेरे दरबार में कोई पहरेदार ना था
दरवाजा मेरा खुला रहता था
बादशाहों में मेरा भी नाम था
डर मुझसे काँपता रहता था

तुम क्या करोंगे खुद की निलामी
बर्बादी में भी हमने खुद को हँसाया था
कुछ नहीं में भी, हमने पुड़ी और पकवान बनाया था 
गरीबी के सारे रिस्तेदारों को,  हमने दावत पे बुलाया  था



4 comments:

thank u so much...

समस्या बतायी जा रही है

समस्या बतायी जा रही है  सबको दिखाई जा रही है  ये भी परेशान है  ये बात समझायी जा रही है   देसी दारू पिलाई जा रही है  रेड लेबल छुपाई जा रही है...