दो ही चार दिन खेल के
वो ज्ञान पेलने लगा
हम बरसों बिताये
हम ही को रेलने लगा
सामने मुझे बिठा के
खुद ही खेलने लगा
कहानियों के बीच में रख के
करैक्टर निभाने लगा
वो रुक गया ग़लतियाँ कर के
मैं मुस्कुराने लगा
वो रत्ती - रत्ती पूछ के
खुद को निखारने लगा
दो ही चार दिन खेल के
वो ज्ञान पेलने लगा
हम बरसों बिताये
हम ही को रेलने लगा
सामने मुझे बिठा के
खुद ही खेलने लगा
कहानियों के बीच में रख के
करैक्टर निभाने लगा
वो रुक गया ग़लतियाँ कर के
मैं मुस्कुराने लगा
वो रत्ती - रत्ती पूछ के
खुद को निखारने लगा
नफ़्रतों को हम दावत पे बुलाएँगे
और फिर बताएँगे उन्हें मरना होगा
खुशियां चाहे जितना गिड़गिड़ाएं
उन्हें जंजीरों में बांधना होगा
कुछ रिस्ते कपड़ों की तरह फटेंगे
उन्हें बातों से तुरपाई करना होगा
लोग आँखें ना चुराएं
ऐसा माहौल बना के रखना होगा
लोग वक्त की तरह बिछड़ते चले जायेंगे
बातों में मोहब्बत परोसना होगा
कितना भी चिल्लाओ बदल नहीं पाओगे
वक्त आने पे सबको मरना होगा
हम प्यार करें या ना करें
तुम्हे प्यार करना होगा
हम झगड़ा रोज़ करेंगे
तुम्हे सिर्फ सुनना होगा
तुम्हारे मौन का क्या करें
तुम्हे भी कुछ कहना होगा
और रिस्ते ऐसे नहीं चलेंगे
मुझे भी चुप रहना होगा
हम क्यों ना तुझे रोज़ रुलाएं
मेरे हंसने पे तुझे हंसना होगा
बगैर तुम्हारे लोग भूल जायेंगे
तुम्हे मेरे पास ही रहना होगा
चेहरे पे उसके गहरी ख़ामोशी होती है
हालातों से लड़ने की उसकी कोशिश होती है ||
तुम उसे डराने में लगे रहे
वो अपने मंज़िलों से रूबरू है हर क़दम पे उसके चुनौती होती है ||
दिखता नहीं है मग़र बादलों में बारिश होती है
क़रीब जाओगे उसके दिल के, तुम्हारे दर्द की भी वहां हिफाज़त होती है ||
कैसे संभल जाता है वो लड़खड़ा के
जब उसके हाथों में बहनो की राखी होती है ||
जख्मों की क़तारें लगती है तब जाके उसके आँखों से बारिश होती है
ज्यादा बकबक मत करो बातों पे उसके क्रांति होती है ||
हर किसी की तरह हल्के में तूँ लेता है जिसे
सच कहूं तो मंज़िलें उसी को हासिल होती हैं ||
उसकी हाथों में जो क़लम ठहरती है
रातों में उसकी उससे बातें होती हैं ||
यक़ीं ना हो तो इतिहास से जाके पूछो
उसके घर में उसकी पूजा होती है ||
वो आज मुझे
समझाने लगे हैं ||
मैंने अपने क़रीब आने दिया
वो मुझे लूट के अब जाने लगे हैं।।
जिन्हे थोड़ा सा हासिल हुआ
वो अब क़तराने लगे हैं ||
थोड़ी मुझमे क़ाबिलियत दिखी
वो लौट के वापस आने लगे हैं ।।
जिन्हे लोगों ने ठुकरा दिया
वो लहरों से अब टकराने लगे हैं ||
लोगों ने जिसे ख़ूब रुलाया
वो अब मुस्कुराने लगे हैं ।।
जिन्हे मोहब्बत ने नकार दिया
वो अब प्रेम गीत गाने लगे हैं ||
लोगों ने जिन्हे भुला दिया था
आज उन्ही की बातें करने लगे हैं ||
जिन्हे ठोकरों ने कई बार गिराया
आज रास्ते उन्हें सम्हालने लगे हैं ||
रोटियां अक्सर जिनकी जल जाया करती थीं
वो आज माल-पुआ खाने लगे हैं ||
जिनसे बरसों तक मोम नहीं पिघला
वो आज पत्थर पिघलाने लगे हैं ||
चारो तरफ जिसकी बुराइयां होती थीं
आज वो तारीफों में नहाने लगे है ||
जो देश को बचाने में नेता बन गए
वो आज दीमक बनके चबाने लगे हैं ||
खुद को जो नास्तिक बताते थे
वो आज मंदिर - मस्जिद जाने लगे हैं ||
समस्या बतायी जा रही है सबको दिखाई जा रही है ये भी परेशान है ये बात समझायी जा रही है देसी दारू पिलाई जा रही है रेड लेबल छुपाई जा रही है...