Monday, January 15, 2018

आज बिछड़ने की मेरी बारी थी


Nature

आज बिछड़ने की मेरी बारी थी 
मैं दरिया का नहीं, समंदर का कतरा हूँ 
ये जुदाई कई दिनों की नहीं 
मिलना और बिछड़ना हर रोज का सिलसिला है

आज मैं छूटा हूँ 
कल मेरी जगह कोई और होगा 
तुम किसी से नहीं बिछड़ते 
तुम्हारा कोई नहीं है क्या 

समंदर से जुदा होके
मैं बेजान सा हो जाता हूँ 
पत्थरों के बीच मुझे छोड़ जाता है 
लहरें बनाने का हुनर भी छीन ले जाता है 

2 comments:

thank u so much...

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