Wednesday, March 3, 2021

खिलता है और गिर के खो जाता है

 


खिलता है और गिर के खो जाता है 

काँटों के बीच में वो मुस्कुराता है 

मोहब्बत पे उसकी बलि चढ़ती है 

कैसा है ये मैयत पे भी नज़र आता  है 


अंगारों में तप के दीयों का गुज़रना होता है 

सीने में आग जला के रौशनी बिखेरना होता है 

कोई देख ना ले पैरों के नीचे का अँधेरा 

दीयों को ये भी छुपाना होता है 


छतों को कहीं और नहीं जाना होता है 

दीवारों पे लेट के एक आशियाँना बनाना होता है 

बारिश, धूप, अँधेरा कितना भी हो 

घरों की खुशियों में थोड़ा मुस्कुराना होता है 


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thank u so much...

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