Thursday, August 30, 2018

कुछ वक्त ऐसा भी गुजरता है

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कुछ वक्त ऐसा भी गुजरता है
की हम नज़र अंदाज़ में होते हैं
अपने तो  हर रोज दुआएं देते हैं
फिर भी कुछ खास नहीं होता है

और उन आंसुओं की कोई कीमत नहीं होती है
जिनको पोछने वाला कोई नहीं होता है
और रिश्तों की दीवारे भी कमजोर पढ़ जाती हैं
जिनमे वफ़ादारी का कोई ईंट नहीं होता है

मेरी हरकतों पे उसकी नज़र होती है
उसके हारने की और क्या वजय हो सकती है
उसके तमाम कोशिशों के बावजूद भी मैं रोया नहीं
ऐसा क्या है मेरे आसुंओं में जो उसको सुकून मिलता है 

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